4 मई 2011

gaav-gaav me swarajya

गाँव-गाँव  में स्वराज्य 
स्वराज्य के बाद अपनी हालत सुधारना हमारे हाथ में है. यह समझना भूल है की जैसे पहले मुसलमान या अंग्रेजो का राज्य था, वैसे अब कांग्रेस का राज्य आ गया है. मुसलमानों, अंग्रेजो या किसी राजा के राज्य आपसे वोट मांगने नहीं आये थे. वे तो पुराने राज्य हो गए. वे राजाओं के राज्य थे, सुलतानो के राज्य थे.
आप राजा, सरकार नौकर 
लेकिन आज जो हमारा स्वराज्य है, वह लोगो का राज्य है. यहाँ राज्य चलाने वाले लोगों के चुने हुए नौकर हैं. आप सब लोगों को सत्ता दी गयी है की अपना राज्य आप जैसा चलाना चाहते हैं,  वैसा चलाईये, और अपना राज्य चलाने के लिए आपको कौन-कौन-से नौकर रखने हैं, यह आप ही तय कीजिये. इस तरह आपसे वोट मांगा गया और आपने उसे दिया भी. इस तरह पांच साल के लिए आपने नौकर कायम किये, जैसे किसान सालभर के लिए नौकर रखता है. अगर उसने अच्छा काम किया, तो उसे फिर से रखता है और नहीं किया तो उसे निकाल भहर कर दूसरा नौकर रखता है, वैसे ही आपने पांच साल के लिए इन नौकरों को चुना है. आपको लगे की इनका काम अच्छा चलता है, तो आप पुन: उन्हें चुनेंगे, नहीं तो दूसरो को चुनेंगे.
इसका मतलब यह की यहाँ जो कोइ बैठे हैं, सबके सब बादशाह हैं, स्वामी हैं. लेकिन आपमें से हर व्यक्ति अलग-अलग स्वामी नहीं है, सब मिलकर स्वामी हैं. इस तरह आप स्वामी तो बन गए, फिर भी आपके पास सत्ता है, इसका भान नहीं है. अवश्य ही हिन्दुस्तान के लोग समझदार हैं. फिर भी वर्षों से उन्हें गुलामी की आदत पड़ गयी है और वे सोचते हैं की सरकार ही माँ-बाप की तरह हमारी चिंता करेगी. किन्तु अब उन्हें यह अनुभव होना जरूरी है की वास्तव में सत्ता हमारे हाथ में आयी है. क्या माता को मातृत्व का अधिकार कोइ देता है ? माता तो स्वयं ही अपने में मातृत्व का अनुभव करती है. क्या शेर को किसी ने जंगल का राजा बनाया है ? वह तो खुद अपना अधिकार महसूस करता है. इसी तरह ग्राम स्वराज्य की शक्ति का लोगों को अन्दर से भान होना चाहिए. प्रश्न है की वह कैसे हो ? क्या गाँव-गाँव के लोग दिल्ली का राज्य चलाएंगे ? गाँव-गाँव के लोग तो गाँव-गाँव का राज्य चलाएंगे. तब उन्हें राज्य चलाने का अनुभव हो जाएगा. 
विनोबा

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