स्वछता में सरस्वती का वास
हम हिन्दुस्तान के लोग स्नान किये बिना भोजन नहीं करते. चार लोटे पानी हो तो काफी है. लेकिन इतने से संतोष नहीं मानना चाहिए. ठीक तरह स्नान जरूर करना चाहिए. अगर गाँव में पानी न हो तो सबको मिलकर इंतज़ाम करना चाहिए. गाँव में स्वछता रखेंगे तो वहां धर्मं रहेगा. जिस गाँव में स्वछता होगी, वहा सरस्वती बसेगी. जहाँ गन्दगी होती है वहां विद्या नहीं आती. सरस्वती का आसन कमल है. वह मैले में कभी नहीं बैठती. इसी तरह अगर गाँव में उद्योग नहीं चलते, सब चीजें बाहर से मंगवाई जाती हैं तो आप की लक्ष्मी आप के गाँव में नहीं रहेगी. आपके गाँव की जमीन चाँद लोगों के हाथ में रहेगी और बाकी लोगों को पूरा खाना नहीं मिलेगा, तो गाँव में शक्ति भी नहीं रहेगी. इस्ल्लिये गाँव में सरस्वती, लक्ष्मी और शक्ति तीनों रखना चाहते हैं, तो गाँव में स्वछता रखनी होगी.
संयम की आवश्यकता
इसी तरह हमें गाँव में संयम का वातावरण लाना होगा. आज जनसँख्या तेजी से बढ़ रही है, यह ठीक नहीं. जनसँख्या बढ़ने का दर नहीं. परन्तु वह जिस ढंग से बढ़ रही है, वह ठीक नहीं. यदि इसी तरह विषय-वासना बढे, हम संयम का पालन न करें और भोग-विलास में ही डूबे रहें, तो निर्वीर्य तो हो ही जायेंगे. दुनिया के सामने विकत समस्या खड़ी हो जायेगी. फिर अहिंसा टिक न सकेगी. मानव मानव को कत्ल करने लगेगा. आज तो लड़ाई में बेखटके हत्या होती है. पर कल डॉक्टर कहेगा कि मनुष्य का ताज़ा मांस पुष्टिकारक होता है तो लोग उसे भी खाना शुरू कर देंगे. आपने सुना होगा कि कई जानवर अपने बच्चों को खा जाते हैं. हम कहते हैं कि मनुष्य भोग-विलास न छोड़ेगा तो यही हालत हो जायेगी. इसलिए आदर्श गाँव को संयमी होना बहुत जरूरी है.
दैनिक प्रार्थना जरूरी
आदर्श गाँव में रोज प्रार्थना होनी चाहिए. इसके लिए गाँव से बाहर स्वच्छ और खुली हवादार जगह हो. छोटा सा कम्पाउंड भी हो सकता है ताकि कुत्ते आदि जानवर उस स्थान पर जाकर गंदा न करें. वहां फूल वगैरह के पेड़ भी लगा सकते हैं. प्रार्थना के लिए जाते समय लोग बैठने के लिए अपना-अपना आसन ले जा सकते हैं. वहां भाई-बहन मिलकर संतों के भजन गायें और कोई प्रार्थना या मौन प्रार्थना रोज किया करें. जिसके जीवन में ज्ञान सुनने को नहीं मिलता, वह शुष्क जीवन है. रोज देह को खाना मिले, इतने से नहीं बनता. अंतरात्मा को भी ज्ञान का आहार, संस्कार देना आवश्यक है.
बगैर शांति के समृद्धि व्यर्थ
फिर गाँव में शांति होनी चाहिए. शहरों में दिन-रात जो आवाज़ चलती है, उससे दिमाग बिगड़ता है. उसके कारण लोग पागल तक हो जाते हैं, और आत्महत्या की प्रवृत्ति बढ़ती है, ऐसा वैज्ञानिकों का कहना है. अमेरिका में यह एक बड़ी समस्या है. वह तो समृद्ध देश कहलाता है, फिर भी वहां के देशवासियों के जीवन में शान्ति नहीं है. शांति के अभाव में बाकी सारी चीजें काम नहीं देतीं. इसलिए आदर्श गाँव में शांति होना अत्यंत आवश्यक है.
ग्रामीण औषधों की प्राथमिकता
स्वस्थ ग्रामीण ही गाँव की कुछ उन्नति कर सकते हैं. इसलिए आदर्श गाँव के लिए स्वास्थ्य भी एक आवश्यक चीज है. अक्सर हम अपनी यात्रा के सिलसिले में गांववालों को गाँव में अस्पताल खोलने की मांग करते पाते हैं. किन्तु हम नहीं समझते कि एलोपेथी के अस्पताल गाँव के लिए लाभदायक होंगे. वैसे किसी भी चिकित्सा के अच्छे औषधों को लेने से हम इनकार नहीं करते. फिर भी जहाँ तक हो, गाँव के ही औषधों से उनका स्वास्थ्य सुधारे, यही चाहते हैं. मैंने पचासों बार जिक्र किया है कि गाँव-गाँव में वनस्पतियों का बगीचा होना चाहिए. वहां सुलभ जडी-बूटियाँ पैदा करनी चाहिए, जिससे लोगों के बहुत से रोग दुरुस्त किये जा सकें. हिन्दुस्तान का औसत गाँव पांच सौ जनसँख्या का होता है. हमने हिसाब लगाया कि ऐसे गाँव के लिए एक एकड़ का वनस्पति का बगीचा पर्याप्त है. बात इतनी ही है कि इस काम का जानकार मनुष्य होना चाहिए.
स्वास्थ्य योजना का मुख्य पहलू: रोग ही न हो !
किन्तु रोग निवारण की योजना को हम नंबर दो का महत्व देते हैं और रोग ही न हो इसे नंबर एक का महत्व. रोग न होने के लिए सबसे महत्व की बात है ग्रामीणों का आहार सुधार. जिसे युक्ताहार कहते हैं, वैसा पूर्ण आहार सबको मिलना चाहिए. जहाँ मजदूरों को पैसे मैं मजदूरी दी जाती है, वहां उन्हें अनाज हासिल करने में भी मुश्किल पड़ती है. आहार में अनाज ही पर्याप्त वस्तु नहीं है. और भी बहुत-सी चीजों की जरूरत होती है. मनुष्य को हर रोज ताज़ी तरकारियाँ काफी मात्रा में मिलनी चाहिए और दूध भी पर्याप्त मिलना चाहिए. हमने हिसाब लगाया कि हर मनुष्य को एक पाव दूध मिलना ही चाहिए. इसके अलावा गुड और थोडा तेल भी होना चाहिए. जब इतनी चीजें मिलेंगी तब शरीर स्वयमेव अच्छा रहेगा और बहुत सी बीमारियाँ टलेंगी.
व्यसन मुक्ति
आदर्श गांववालों को व्यसनों से मुक्त होना पड़ेगा. शराब, गांजा, अफीम, बीडी आदि बुरी चीजें छोड़ देनी होंगी. इन चीजों से शरीर को कोई लाभ नहीं, बल्कि सब प्रकार से हानि ही है. हमारी समझ में नहीं आता कि गांववाले इन चीजों का क्यों इस्तेमाल करते हैं ?
युक्त आहार, युक्त विहार
इस तरह आरोग्य के लिए युक्त आहार और युक्त विहार रखने के बाद भी अगर रोग हुए तो हम प्रथम महत्त्व 'पंचकर्म' या प्राकृतिक चिकित्सा को देंगे. एनिमा, मालिश आदि योजना गाँव-गाँव में आसानी से हो सकती है. फिर लंघन (उपवास) का भी कुछ महत्व है. इस तरह रोग निवारण के लिए पंचकर्म और जडी बूटियों का बगीचा, ये दो बातें करनी होंगी. तीसरी बात भक्ष्य-अभक्ष्य विचार है. जिसे हम 'आहार शास्त्र कहते हैं, उसका ज्ञान सबको होना चाहिए. कौन सी चीज कहा चाहिए और कौन सी नहीं इसकी जानकारी सबको होनी चाहिए.
हम हिन्दुस्तान के लोग स्नान किये बिना भोजन नहीं करते. चार लोटे पानी हो तो काफी है. लेकिन इतने से संतोष नहीं मानना चाहिए. ठीक तरह स्नान जरूर करना चाहिए. अगर गाँव में पानी न हो तो सबको मिलकर इंतज़ाम करना चाहिए. गाँव में स्वछता रखेंगे तो वहां धर्मं रहेगा. जिस गाँव में स्वछता होगी, वहा सरस्वती बसेगी. जहाँ गन्दगी होती है वहां विद्या नहीं आती. सरस्वती का आसन कमल है. वह मैले में कभी नहीं बैठती. इसी तरह अगर गाँव में उद्योग नहीं चलते, सब चीजें बाहर से मंगवाई जाती हैं तो आप की लक्ष्मी आप के गाँव में नहीं रहेगी. आपके गाँव की जमीन चाँद लोगों के हाथ में रहेगी और बाकी लोगों को पूरा खाना नहीं मिलेगा, तो गाँव में शक्ति भी नहीं रहेगी. इस्ल्लिये गाँव में सरस्वती, लक्ष्मी और शक्ति तीनों रखना चाहते हैं, तो गाँव में स्वछता रखनी होगी.
संयम की आवश्यकता
इसी तरह हमें गाँव में संयम का वातावरण लाना होगा. आज जनसँख्या तेजी से बढ़ रही है, यह ठीक नहीं. जनसँख्या बढ़ने का दर नहीं. परन्तु वह जिस ढंग से बढ़ रही है, वह ठीक नहीं. यदि इसी तरह विषय-वासना बढे, हम संयम का पालन न करें और भोग-विलास में ही डूबे रहें, तो निर्वीर्य तो हो ही जायेंगे. दुनिया के सामने विकत समस्या खड़ी हो जायेगी. फिर अहिंसा टिक न सकेगी. मानव मानव को कत्ल करने लगेगा. आज तो लड़ाई में बेखटके हत्या होती है. पर कल डॉक्टर कहेगा कि मनुष्य का ताज़ा मांस पुष्टिकारक होता है तो लोग उसे भी खाना शुरू कर देंगे. आपने सुना होगा कि कई जानवर अपने बच्चों को खा जाते हैं. हम कहते हैं कि मनुष्य भोग-विलास न छोड़ेगा तो यही हालत हो जायेगी. इसलिए आदर्श गाँव को संयमी होना बहुत जरूरी है.
दैनिक प्रार्थना जरूरी
आदर्श गाँव में रोज प्रार्थना होनी चाहिए. इसके लिए गाँव से बाहर स्वच्छ और खुली हवादार जगह हो. छोटा सा कम्पाउंड भी हो सकता है ताकि कुत्ते आदि जानवर उस स्थान पर जाकर गंदा न करें. वहां फूल वगैरह के पेड़ भी लगा सकते हैं. प्रार्थना के लिए जाते समय लोग बैठने के लिए अपना-अपना आसन ले जा सकते हैं. वहां भाई-बहन मिलकर संतों के भजन गायें और कोई प्रार्थना या मौन प्रार्थना रोज किया करें. जिसके जीवन में ज्ञान सुनने को नहीं मिलता, वह शुष्क जीवन है. रोज देह को खाना मिले, इतने से नहीं बनता. अंतरात्मा को भी ज्ञान का आहार, संस्कार देना आवश्यक है.
बगैर शांति के समृद्धि व्यर्थ
फिर गाँव में शांति होनी चाहिए. शहरों में दिन-रात जो आवाज़ चलती है, उससे दिमाग बिगड़ता है. उसके कारण लोग पागल तक हो जाते हैं, और आत्महत्या की प्रवृत्ति बढ़ती है, ऐसा वैज्ञानिकों का कहना है. अमेरिका में यह एक बड़ी समस्या है. वह तो समृद्ध देश कहलाता है, फिर भी वहां के देशवासियों के जीवन में शान्ति नहीं है. शांति के अभाव में बाकी सारी चीजें काम नहीं देतीं. इसलिए आदर्श गाँव में शांति होना अत्यंत आवश्यक है.
ग्रामीण औषधों की प्राथमिकता
स्वस्थ ग्रामीण ही गाँव की कुछ उन्नति कर सकते हैं. इसलिए आदर्श गाँव के लिए स्वास्थ्य भी एक आवश्यक चीज है. अक्सर हम अपनी यात्रा के सिलसिले में गांववालों को गाँव में अस्पताल खोलने की मांग करते पाते हैं. किन्तु हम नहीं समझते कि एलोपेथी के अस्पताल गाँव के लिए लाभदायक होंगे. वैसे किसी भी चिकित्सा के अच्छे औषधों को लेने से हम इनकार नहीं करते. फिर भी जहाँ तक हो, गाँव के ही औषधों से उनका स्वास्थ्य सुधारे, यही चाहते हैं. मैंने पचासों बार जिक्र किया है कि गाँव-गाँव में वनस्पतियों का बगीचा होना चाहिए. वहां सुलभ जडी-बूटियाँ पैदा करनी चाहिए, जिससे लोगों के बहुत से रोग दुरुस्त किये जा सकें. हिन्दुस्तान का औसत गाँव पांच सौ जनसँख्या का होता है. हमने हिसाब लगाया कि ऐसे गाँव के लिए एक एकड़ का वनस्पति का बगीचा पर्याप्त है. बात इतनी ही है कि इस काम का जानकार मनुष्य होना चाहिए.
स्वास्थ्य योजना का मुख्य पहलू: रोग ही न हो !
किन्तु रोग निवारण की योजना को हम नंबर दो का महत्व देते हैं और रोग ही न हो इसे नंबर एक का महत्व. रोग न होने के लिए सबसे महत्व की बात है ग्रामीणों का आहार सुधार. जिसे युक्ताहार कहते हैं, वैसा पूर्ण आहार सबको मिलना चाहिए. जहाँ मजदूरों को पैसे मैं मजदूरी दी जाती है, वहां उन्हें अनाज हासिल करने में भी मुश्किल पड़ती है. आहार में अनाज ही पर्याप्त वस्तु नहीं है. और भी बहुत-सी चीजों की जरूरत होती है. मनुष्य को हर रोज ताज़ी तरकारियाँ काफी मात्रा में मिलनी चाहिए और दूध भी पर्याप्त मिलना चाहिए. हमने हिसाब लगाया कि हर मनुष्य को एक पाव दूध मिलना ही चाहिए. इसके अलावा गुड और थोडा तेल भी होना चाहिए. जब इतनी चीजें मिलेंगी तब शरीर स्वयमेव अच्छा रहेगा और बहुत सी बीमारियाँ टलेंगी.
व्यसन मुक्ति
आदर्श गांववालों को व्यसनों से मुक्त होना पड़ेगा. शराब, गांजा, अफीम, बीडी आदि बुरी चीजें छोड़ देनी होंगी. इन चीजों से शरीर को कोई लाभ नहीं, बल्कि सब प्रकार से हानि ही है. हमारी समझ में नहीं आता कि गांववाले इन चीजों का क्यों इस्तेमाल करते हैं ?
युक्त आहार, युक्त विहार
इस तरह आरोग्य के लिए युक्त आहार और युक्त विहार रखने के बाद भी अगर रोग हुए तो हम प्रथम महत्त्व 'पंचकर्म' या प्राकृतिक चिकित्सा को देंगे. एनिमा, मालिश आदि योजना गाँव-गाँव में आसानी से हो सकती है. फिर लंघन (उपवास) का भी कुछ महत्व है. इस तरह रोग निवारण के लिए पंचकर्म और जडी बूटियों का बगीचा, ये दो बातें करनी होंगी. तीसरी बात भक्ष्य-अभक्ष्य विचार है. जिसे हम 'आहार शास्त्र कहते हैं, उसका ज्ञान सबको होना चाहिए. कौन सी चीज कहा चाहिए और कौन सी नहीं इसकी जानकारी सबको होनी चाहिए.
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